परिचय
दुनिया में मुर्गी पालन एक मात्र ऐसा उद्योग है जो दुगुनी तेजी से विकसित हो रहा हैI इसके उत्पादकता को बढ़ाने के लिए उच्च गुणवत्ता वाली मुर्गियों की आवश्यकता होती है और उनकी वृद्धि के लिए बहुतायत मेंअच्छा फीड होना अनिवार्य हैI इसके साथ-साथ मुर्गियों में होने वाली विभिन्न बिमारियों और उनके कारण की भी जानकारी होना अति आवश्यक है I फीडखराब होने के कारण भिन्न तरह की बीमारियां उत्पन्न हो सकती हैं I फीड खराब होने के कईं कारण हो सकते हैं I उनमे से एक महत्वपूर्ण कारण है माइकोटॉक्सिन का उत्पादन I यह एक प्रकार का जहरीला पदार्थ है जो एक फफूंदी के फीड या अनाज में उत्पन्न होने से बनता है I यह रोग कुक्कुट प्रजातियों के स्वास्थ और उत्पादकता को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है I यह बीमारी विश्व स्तर पर मुर्गी व्यवसाय के लिए निरंतर खतरा बनी हुई है I मुर्गी पIलकों के बीच मIइकोटोक्सिकोसिस के प्रसार के बारे में जागरूकता बहुत कम है I रोग के विश्लेषण करने के लिए उपलब्ध आधुनिक तकनीकों का भी अभाव है जिससे इस रोग का समय पर पता लगाना कठिन हो जाता है I इस लेख में माइकोटाक्सिकोसिस से होने वाले नुक्सान और उनके रोकथाम और नियंत्रण के उपIएकी चर्चा की गई है I
इस बिमारी के क्या कारण होते हैं
इस बिमारी को मIइकोटोक्सिकोसिस के नाम से जाना जाता है I वैसे तो भिन्न प्रकार की फफूंदी विभिन्न प्रकार की माइकोटॉक्सिन्स का उत्पादन करते हैं
३ प्रमुख फफूंदी और उनसे उत्पन्न होने वाले माइकोटॉक्सिन्स कुछ इस प्रकार हैं :-
१)अस्पर्जिलस – अफ्लाटॉक्सिन (बी 1, बी 2, जी 1, जी 2, एम 1, एम 2)
२) फ्युसेरियम – जिरेलेनोन और ट्रिकोथेकेन (टी -2 विष, एचटी -2 विष)
३) पेनिसिलियम
यह रोग तब उत्पन्न होता है जब फीड को नमी वाली जगहों पर रखा जाता है जिसके कारण उसमे फफूंदी पैदा हो जाती है और माइकोटॉक्सिन्स का उत्पादन करती है जो की छोटी मात्रा में फीड के माध्यम से लम्बे समय तक खिलाया जाता है I शरीर में प्रवेश करने के कुछ समय बाद ही यह महत्वपूर्ण अंगों के काम करने की प्रतिक्रिया को प्रभावित करता है I
नमीऔर अमोनिया भरपूर होने के कारण फफूंदी उत्पन्न होती है और घातक माइकोटॉक्सिन्सका उत्पादन करती है I
कुछ अन्य कारण भी इस बिमारी की गंभीरता को बढ़ा सकती है :-
- पक्षी के अंद्रूणी स्वास्थ और पोषण की स्तिथि I
- ज्यादा उम्र वाले पक्षी जल्दी बीमारी से ग्रसित होते हैं I
- दूषित फीड के सेवन की अवधि I लम्बे समय तक इन विषाक्त पदार्थों की संपर्क में रहने से मुर्गियां ज्यादा ग्रसित होती हैं I
- फीड में भिन्न प्रकार के माइकोटॉक्सिन्स का होना I
- किसी अन्य बिमारी के कारण प्रतिरक्षाक्षमता में कमी आना I
प्रभाव:-इस रोग से मुर्गियों की अवस्था पर क्या प्रभाव पड़ता है
- खाने-पीने की कमी के कारण ,वजन कम हो सकता है जिससे मुर्गियों की मृत्यु होना निश्चित है I
- शरीर में प्रतिरक्षा में भी कमी हो सकती है जिसकेपरिणाम स्वरुप अन्य बीमारियों का आगमन हो सकता है I
- मुँह और जीभ की सतह पर छाले दिखाई देते हैं
- यह बिमारी मुख्य रूप से जिगर को प्रभावित करती है और उसके पश्चात गुर्दे की भी समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती है I
- शरीर में कमज़ोरी और अंडे की उत्पादकता में भी घटौतरी हो सकती है I
विभिन्न मायकोटॉक्सिकोसिस के नैदानिक लक्षण
आर्थिक नुक्सान होने का एक मुख्य कारण
इस रोग से आर्थिक नुक्सान होता है और वह कुछ इस प्रकार हैं:-
- अंडा उत्पादन में कमी आना।
- फ़ीड रूपांतरण में कमी आनाजिससे वज़न में प्रभाव पड़ता है।
- रुग्णता और मृत्यु दर में आकस्मिक वृद्धि।
- अंडे की छिलके नाज़ुक होने लगते हैं और जल्दी टूट जाते हैं।
- प्रजनन क्षमता में कमी।
- रोगों के प्रति संवेदनशीलता में वृद्धि।
इस बीमारी को कैसे नियंत्रित किया जाए
- माइकोटॉक्सिन का पूर्ण उन्मूलन असंभव हैइसलिए इसको नियंत्रित करना ही एक मात्र उपाय है I
- सबसे पहले तोफीड की उत्पादि के तरीके पर गौर करना चाहिए I
- फीड की कटाई से लेकर उसके भंडारण पर ध्यान देना चाहिए I
- भंडारण को हवादार बनाए ताकि फीड में नमी न होने पाए I
- मुर्गियों को फीड भी लेबोरेटरीमें पूरीजाँच पड़ताल के बाद ही खिलाना चाहिए और जेहरीले फीड को तुरंत की हटा दे I
- अगर फीड गीला है तो पूर्ण रूप से सूखा कर हीमुर्गियों को खिलाये I
- अगर कोई पक्षी बीमार है तोतुरंत ही इलाज कराएं और बाकि पक्षियों से उसे अलग कर दे I
उपचार की विधियां
- लक्षण के अनुसार तुरंत ही पशुचिकित्सक को दिखाएंऔर इलाज कराएंI
- प्रतिरक्षा की कमी को पूरा करने के लिए फीड में लिवर एक्सट्रेक्टऔर मल्टीविटामिन मिला कर
- खिलाएं I
- फीड में थोड़ी मात्रा मेंकोयला मिलाने से माइकोटॉक्सिन का प्रभाव कम पड़ता है I
हिमानी रवि*,अंकिताअवस्थी,प्रसेनजितधर,मोनिका भारद्वाज, सुभाषवर्मा, राजेशचहोता, औरमनदीपशर्मा
पशुसूक्ष्मजीवविज्ञान, डॉ. जीसीनेगीपशुचिकित्साएवंपशुविज्ञानमहाविद्यालय, चौधरीसरवनकुमारहिमाचलप्रदेशकृषिविश्वविद्यालय,पालमपुर, हिमाचलप्रदेश